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अधूरी इच्छा |

  • Writer: Mister Bhat
    Mister Bhat
  • Aug 27
  • 1 min read

चाहत थी उड़ने की, पर पर काट दिए गए,

सपने आँखों में थे, मगर हालात निगल गए।


दिल कहता था रंगमंच सजाऊँ,

समाज बोला – किताबों में ही डूब जाऊँ।


कभी गिटार की धुनों पर जीना चाहा,

कभी मैदानों में अपना लहू बहाना चाहा।


पर घर की चौखट ने कदम रोक लिए,

ज़िम्मेदारियों ने दिल के अरमान तोड़ दिए।


आज भी धड़कनों में वही पुकार है,

"मैं अधूरा नहीं, बस इंतज़ार है।"


हर टूटा सपना एक आग जगाता है,

हर अधूरी चाहत हौसला बन जाता है।


युवा हूँ, इसलिए हार नहीं मानूँगा,

अधूरी इच्छाओं को भी पूरा कर जाऊँगा।



 
 
 

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