top of page
Search

खामोशी की ताक़त: चुप रहना भी एक कला है

  • Writer: Mister Bhat
    Mister Bhat
  • 24 hours ago
  • 1 min read

खामोशी की ताक़त: चुप रहना भी एक कला है


हम सोचते हैं कि दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए हमें बोलना ज़रूरी है —ज्यादा, तेज़ और हर वक़्त।लेकिन सच ये है कि कई बार हमारी चुप्पी हमारे शब्दों से ज़्यादा बोलती है।

खामोशी सिर्फ़ आवाज़ का अभाव नहीं है,ये एक ताक़त है, जो सुनने वाले को सोचने पर मजबूर कर देती है।

कभी गौर किया है?किसी बहस के बीच, जब आप जवाब नहीं देते,तो सामने वाला अपने ही शब्दों में उलझने लगता है।किसी गुस्से में डूबे इंसान के सामने,जब आप खामोश रहते हैं,तो उसका गुस्सा हवा में तैरकर अपने आप शांत हो जाता है।

खामोशी हमें सुनना सिखाती है।हम जब बोलते हैं, तो सिर्फ़ वही सुनते हैं जो हम पहले से जानते हैं।लेकिन जब हम चुप रहते हैं,तो हम वो भी सुन पाते हैं जो हमसे छूट जाता है —लोगों की असली भावनाएँ, उनकी झिझक, उनका दर्द।

चुप्पी का मतलब कमजोरी नहीं है।ये अपने आप पर इतना भरोसा होना है कि हमें हर बात साबित करने की ज़रूरत महसूस न हो।ये समझना कि हर सवाल का जवाब शब्द नहीं होते।कभी-कभी सिर्फ़ एक नज़र, एक मुस्कान, या सिर्फ़ खामोश मौजूदगी ही काफी होती है।

खामोशी एक दर्पण है —जिसमें सामने वाला अपना असली चेहरा देख लेता है।और शायद इसी वजह से,ज़िंदगी के सबसे गहरे पल अक्सर शब्दों में नहीं,बल्कि खामोशियों में छुपे होते हैं।



 
 
 

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page