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ज़िंदगी का असली मतलब: भागदौड़ से परे

  • Writer: Mister Bhat
    Mister Bhat
  • Aug 10
  • 2 min read

Updated: Aug 12

ज़िंदगी का असली मतलब: भागदौड़ से परे


सुबह की पहली किरण खिड़की से झाँकती है,

लेकिन हम उसे देख नहीं पाते।

अलार्म की तेज़ आवाज़, मोबाइल स्क्रीन पर टू-डू लिस्ट,

और कॉफ़ी के प्याले में घुली नींद की बची हुई परत… यही तो है हमारी सुबह।


हम भागते हैं —

दफ़्तर की ओर, स्कूल की ओर, सपनों की ओर,

और कभी-कभी उन चीज़ों की ओर भी

जिनकी हमें असल में ज़रूरत नहीं होती।


लेकिन क्या यही ज़िंदगी है ?

या फिर ये सिर्फ़ एक लंबी दौड़ है,

जहाँ मंज़िल का पता भी नहीं और साँसें पहले ही टूटने लगी हैं?


ज़िंदगी का असली मतलब शायद उस रफ्तार में नहीं छुपा

जो दुनिया हमसे चाहती है।

वो तो छुपा है किसी ठंडी शाम में,

जब हम बिना घड़ी देखे बैठते हैं।

किसी पुराने दोस्त की हँसी में,

जो सालों बाद भी वही गर्माहट देती है।

किसी अनजाने बच्चे की आँखों में,

जो दुनिया को पहली बार देख रहा हो।


हम सोचते हैं कि हम ज़िंदगी जी रहे हैं,

लेकिन ज़्यादातर हम सिर्फ़ समय काट रहे होते हैं।

असली जीना तब होता है जब हम अपने अंदर की खामोशी सुन पाते हैं।

जब हम किसी फूल के खिलने को सिर्फ़ देखने के लिए रुकते हैं,

या जब हम किसी बुज़ुर्ग के झुर्रियों भरे चेहरे में एक पूरी कहानी पढ़ लेते हैं।

ज़िंदगी का मतलब शायद इतना बड़ा भी नहीं जितना हम सोचते हैं।


वो शायद बस यही है —

पूरी तरह मौजूद रहना,हर पल को महसूस करना,

और मान लेना कि खुश रहने के लिए हमें पूरे ब्रह्मांड की नहीं, सिर्फ़ एक सच्चे पल की ज़रूरत है।

क्योंकि भागदौड़ से बाहर ही वो रास्ता है,जहाँ ज़िंदगी हमें मुस्कुराकर कहती है —

"तुम मुझे ढूँढ नहीं सकते, मैं तो पहले से ही तुम्हारे साथ हूँ।"



 
 
 

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