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रिश्तों में दूरी और नज़दीकी का संतुलन

  • Writer: Mister Bhat
    Mister Bhat
  • Aug 10
  • 1 min read

रिश्तों में दूरी और नज़दीकी का संतुलन


रिश्ते फूलों की तरह होते हैं —

अगर बहुत पास रखो तो मुरझा जाते हैं,

और बहुत दूर रखो तो उनकी खुशबू भी खो जाती है।


हम अक्सर सोचते हैं कि किसी को प्यार करने का मतलब है

उसके साथ हर वक़्त रहना,

हर बात जानना,

हर पल में शामिल होना।

लेकिन सच्चाई ये है कि बहुत ज़्यादा नज़दीकी भी

रिश्तों को दम घोंटने लगती है।


दूरी और नज़दीकी का संतुलन ही वो जगह है

जहाँ रिश्ते सांस लेते हैं।

जहाँ दोनों को अपना-अपना आसमान मिलता है,

लेकिन फिर भी एक धागा ऐसा होता है

जो उन्हें जोड़ता रहता है।


कभी-कभी थोड़ी दूरी से ही हम

किसी की अहमियत समझ पाते हैं।

जैसे बारिश रुकने के बाद

मिट्टी की खुशबू महसूस होती है,

वैसे ही दूरी के बाद

मुलाक़ात की गर्माहट दोगुनी हो जाती है।


नज़दीकी ज़रूरी है,

ताकि हमें पता रहे कि हम अकेले नहीं हैं।

दूरी ज़रूरी है,

ताकि हमें याद रहे कि हम

अपनी पहचान में भी पूरे हैं।

इसलिए, रिश्तों में सबसे बड़ी समझदारी है —

इतना पास रहना कि दिल जुड़ा रहे,

और इतना दूर रहना कि सांसें खुली रहें।


 
 
 

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