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क्रिकेट – एक खेल नहीं, एक नशा बन चुका है भारत के युवाओं के लिए"

  • Writer: Mister Bhat
    Mister Bhat
  • Nov 12
  • 3 min read

🧠 लेख शीर्षक: "क्रिकेट – एक खेल नहीं, एक नशा बन चुका है भारत के युवाओं के लिए"

भारत में क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं रहा, यह अब एक “धार्मिक नशा” बन चुका है — ऐसा नशा जिसने देश के करोड़ों युवाओं के दिमाग पर कब्जा कर लिया है।जहाँ दुनिया के युवा विज्ञान, तकनीक, नवाचार और शिक्षा की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं हमारे देश के लाखों युवा आज भी “विराट ने आज शतक मारा या नहीं”, “इंडिया-पाक मैच में कौन जीता” जैसी बेकार बहसों में अपना पूरा जोश और समय बर्बाद कर रहे हैं।


⚔️ जब खेल ‘युद्ध’ बन जाए

क्रिकेट अब खेल नहीं रहा, ये एक भावनात्मक युद्ध बन चुका है।लोगों ने इसे मनोरंजन की जगह राष्ट्रवाद की परीक्षा बना दिया है।भारत-पाक मैच हो या कोई बड़ा टूर्नामेंट — ऐसा माहौल बन जाता है जैसे देश की इज्जत सिर्फ इस खेल पर टिकी हो।हार हो जाए तो सोशल मीडिया पर गालियाँ, जीत हो जाए तो ऐसे जश्न जैसे दुश्मन देश को मिटा दिया गया हो।

सवाल ये है — क्या सच में देश की ताकत का पैमाना क्रिकेट है?क्या किसी खिलाड़ी के छक्के या चौके से हमारे देश के किसानों, मजदूरों, बेरोजगार युवाओं की जिंदगी बदल जाती है?जवाब है — नहीं।


💸 क्रिकेट: एक बिजनेस, एक हेरफेर का खेल

क्रिकेट अब एक “बिजनेस मशीन” बन चुका है।ऊपर बैठे कुछ समझदार दिमागों ने इसे एक हथियार बना दिया है —

  • जिससे जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाया जा सके,

  • जिससे मीडिया TRP कमा सके,

  • जिससे ब्रांड्स करोड़ों का मुनाफा कमा सकें,

  • और जिससे राजनीति अपनी विफलताओं को छिपा सके।

IPL के सीजन में देश के हर युवा की सोच बदल जाती है —पढ़ाई, नौकरी, करियर सब पीछे रह जाता है,बस दिन-रात “टीम कौन सी जीत रही है” का नशा।यह वही युवा हैं जिन्हें देश को आगे ले जाना था,लेकिन वे स्क्रीन के सामने बैठे चीयरलीडर बन चुके हैं।


📉 भटकी हुई युवा शक्ति

भारत की सबसे बड़ी ताकत — उसका युवा वर्ग — आज मनोरंजन के जाल में फँस चुका है।क्रिकेट के नाम पर जोश दिखाने वाले ये युवा देश के असली मुद्दों पर चुप हैं —

  • शिक्षा की हालत क्या है,

  • बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है,

  • किसानों की आत्महत्याएँ क्यों नहीं रुक रही हैं,

  • देश की नीतियाँ कहाँ जा रही हैं —इन सब बातों से उन्हें कोई मतलब नहीं।

उन्हें बस एक “सिक्स” चाहिए, एक “विकेट”, और एक “जश्न”।


🎭 मीडिया और राजनीति की चाल

टीवी चैनल्स जानते हैं —“क्रिकेट बिकता है।”इसलिए हर न्यूज़ शो में क्रिकेट का मसाला डाला जाता है।IPL हो या World Cup — मीडिया हाउस और ब्रांड्स अरबों कमा रहे हैं,और जनता समझ रही है कि वो “देशभक्ति” दिखा रही है।

राजनीतिक पार्टियाँ भी इस खेल का फायदा उठाती हैं —जब जनता बेरोज़गारी, महंगाई या भ्रष्टाचार पर सवाल पूछने लगती है,तब कोई बड़ा मैच या इवेंट उनके गुस्से को ठंडा कर देता है।क्रिकेट अब एक अफीम है — जनता को खुश रखने की अफीम।


🔥 अब जागो, क्रिकेट के नहीं, देश के फैन बनो

क्रिकेट से नफरत नहीं करनी चाहिए,लेकिन अंधभक्ति से जरूर करनी चाहिए।हर खेल का आनंद लो, पर उसे अपने जीवन का केंद्र मत बनाओ।क्रिकेटर को “भगवान” मत बनाओ — वो भी इंसान है,जो करोड़ों रुपये कमा रहा है, जबकि तुम टिकट खरीदकर, टीवी देखकर,उसकी कमाई बढ़ा रहे हो और अपना समय घटा रहे हो।

अब वक्त है कि युवा समझे —देश को स्टेडियम में नहीं, लैब में, ऑफिस में, खेत में, सड़क पर, और विचारों में जीतना है।वो दिन जब भारत का युवा क्रिकेट से ज्यादा “क्रिएटिविटी” में रुचि लेगा,वही दिन होगा जब असली भारत विश्वगुरु बनेगा।


✍️ निष्कर्ष

क्रिकेट एक खेल है — बस उतना ही।इससे आगे बढ़ना सीखो।देश को तुम्हारे शॉट्स या चौके की नहीं, तुम्हारे विचारों और कर्मों की जरूरत है।क्रिकेट को खेल की तरह खेलो,लेकिन ज़िंदगी को मैदान बनाओ — जहाँ जीतने का मतलब दूसरों को हराना नहीं,बल्कि खुद को बेहतर बनाना है।


 
 
 

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